युगपुरुष भगवान बुद्ध

  भगवान विष्णु के नौंवे अवतार के रूप में जाने जाने वाले भगवान बुद्ध का जन्म बैशाख पूर्णिमा को 563 ईसा पूर्व लुंबिनी (कपिलवस्तु) में राजा शुद्धोधन के घर पर महारानी महामाया के गर्भ से हुआ था। इनका विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ। उनके एक पुत्र राहुल भी था। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। संसार के दु:खों से दु:खी होकर सिद्धार्थ एक दिन रात के अंधेरे में घर को त्यागकर निकल गए और एकान्त निर्जन में तपस्या करते हुए बोध को प्राप्त कर बुद्ध कहलाए। इन्होंने बौद्ध धर्म के स्थापना की। इनकी मृत्यु 483 ईसा पूर्व कुशीनगर में 80 वर्ष की अवस्था में हुई।
       करुणा की मूर्ति महात्मा बुद्ध निष्काम सेवा को ही सर्वोपरि मानते थे। वे अपने साथ रहने वाले समस्त भिक्षुओं का ध्यान रखते थे कि कौन कहाँ और कैसा है। एक बार की बात है कि उन्हें किसी एक भिक्षु का समाचार नहीं मिला और वह दिखाई भी नहीं दिया तो उन्होंने समीप खड़े भिक्षु भदंत आनंद से पूछा अमुक भिक्षु कहाँ पर है? भदन्त आनंद ने उत्तर दिया। भगवन  वह अतिसार से पीड़ित है।  सुनते ही तथागत उस ओर चल दिए भदंत आनंद और अन्य भिक्षु भी उनके साथ चल दिए। वह उसके समीप कुटिया में पहुँचे तो वह पड़ा था। वह मल-मूत्र से लिपटा था। भगवान ने उसे देखा और पूछा भाई तुम्हें क्या कष्ट है? उसने कहा मुझे अतिसार हुआ है भगवान! क्या कोई तुम्हारी सेवा परिचर्या के लिए नहीं आया?  उसने कहा नहीं भगवान। तो फिर ऐसा क्यों हुआ? क्या भिक्षु तुम्हारी देखभाल नहीं करते? वे योग साधना में निरत रहते हैं। मैंने यही सुना है। इसीलिए मेरी कोई चिंता नहीं करता है। अपने पास खड़े भिक्षु से भगवान ने जल लाने के लिए कहा। वह जल लेकर के आया तो भगवान ने स्वयं अपने हाथों से उसका पूरा शरीर पोंछा और धोया उसकी परिचर्या की। उन्होंने किसी से कुछ नहीं कहा। संध्या होने पर संध्याकालीन प्रार्थना के लिए सभी एकत्र हुए।  परिचर्या के उपरांत तथागत बैठक में पहुँचे र उन्होंने बिना किसी भूमिका के बच्चों को संबोधित करते हुए कहा- भाइयों क्या हममें से कोई एक भिक्षु बीमार है? सभी ने कहा हाँ भगवान। तो उसे क्या कष्ट है? भगवान भिक्षु को अतिसार है। उसकी देखभाल कौन कर रहा है? कोई नहीं। क्यों? सब चुप थे। थोड़ी देर सन्नाटा छाया रहा। फिर बुद्ध बोले "मैं जानता हूँ, तुम सबको अपने  आत्मकल्याण की चिंता है ,पर याद रखो-  योग- साधनाओं से वह संभव है या नहीं, यह तो मुझे ज्ञात नहीं, पर जो सच्चे हृदय से दुखी जनों की सेवा निष्काम भाव से करते हैं, उनकी स्वर्ग- मुक्ति तथा आत्मकल्याण सर्वथा अक्षुण्ण अवश्य है,  उसे कोई भी उससे विचलित नहीं कर सकता।"

बुद्धम शरणम् गच्छामि, 
धर्मं शरणं गच्छामि।

लेखक
अंजू गुप्ता,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय खम्हौरा प्रथम,
विकास क्षेत्र-महुआ, 
जनपद-बाँदा।

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