बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

मैं बोझ नहीं हूँ माँ मुझको,
यूँ कोख में न मारो तुम।
तुम्हीं तो मेरी ताकत हो,
ऐसे हिम्मत न हारो तुम।।

आने दो मुझे इस दुनिया में,
तुम्हारा नाम रोशन कर दूँगी।
तेरी हर तकलीफ को दूर कर,
तेरा घर खुशियों से भर दूँगी।।

न होगी जो बेटी तो ये,
बेटों को किस संग ब्याहेंगे।
बहन न होगी तो ये भाई,
राखी किससे बँधवाएँगे।।

बोझ समझकर बेटी को,
न बेटी का अपमान करो।
सबका जीवन सुधारती,
तुम भी इसका सम्मान करो।।

क्या कसूर होता है मेरा,
जो तुम भी पराया कर देती हो।
मुझे जिन्दगी के बजाय,
मौत की नींद सुला देती हो।।

आने दो इस धरा पे मुझको,
नेह भरी निगाह से देख सकूँगी मैं सबको।

उड़ान भरूँगी नभ में
तैरूँगी गहरे जल में,
महकूँगी फूलों सी मैं,
दौडूँगी पथरीले थल में।

मत मारो बिटिया को,
घर कैसे बनाओगे।
नहीं संभले तो एक दिन पछताओगे।।

बेटी है कुल की शान,
बेटी है घर का मान।
बेटा बेटी है समान,
कन्या है एक वरदान।।

अगर हीरा है बेटा तो मोती है बेटी,
एक कुल रोशन करेगा बेटा,
पर दो कुलों की लाज रखती है बेटी।

माँ चाहें मुझे प्यार न देना,
चाहें दुलार न देना।
कर सको तो इतना करना,
जन्म से पहले मार न  देना।।

मानो ना मानो यह हकीकत है,
भ्रूण हत्या रोकने की समाज को सबसे अधिक जरूरत है।

वक्त आ गया आज है जो उस समय को अब संभालो तुम।।
मैं भी तो तेरा खून ही हूँ,
इस बात को विचारों तुम।

मैं बोझ नहीं हूँ माँ मुझको,
यूँ कोख में न मारो तुम।।
तुम्हीं तो मेरी ताकत हो,
ऐसे हिम्मत न हारो तुम।।

रचयिता
ज्योति पटेल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बरमपुर,
विकास क्षेत्र व जनपद-चित्रकूट।

Comments

  1. बहुत सुन्दर।भावपूर्ण।
    सतीश चन्द्र"कौशिक"

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