विजयदशमी

इस विजयदशमी पुतले का नहीं,         

गलत विचारों का दहन करते हैं।


अब न समाज में गलत होने देंगे, 

न गलत करते हैं, न सहन करते हैं, 

आओ यह प्रण करते हैं।


इस विजयदशमी पुतले का नहीं,         

गलत विचारों का दहन करते हैं।


रावण के तो दस सिर थे उजागर, 

अब तो लोग मुखौटा पहन चलते हैं।


इस विजयदशमी पुतले का नहीं, 

गलत विचारों का दहन करते हैं।


रूप, धन और सत्ता के मद में लोग, 

मस्त अपनी ही टशन रखते हैं।


इस विजयदशमी पुतले का नहीं, 

गलत विचारों का दहन करते है।


झूठी है यह दिखावे की दुनिया, 

बचने के उपाय पर विचार गहन करते हैं।


इस विजयदशमी पुतले का नहीं, 

गलत विचारों का दहन करते हैं।


छोड़कर लोभ, क्रोध, अहंकार,               

मानवीय मूल्यों का रथ वहन करते हैं।


इस विजयदशमी पुतले का नहीं, 

गलत विचारों का दहन करते हैं।


रचयिता
रेनू चौधरी,
एआरपी विज्ञान,      
विकास खण्ड-मुरादनगर,
जनपद-गाजियाबाद।



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