मितव्ययिता

मितव्ययिता सब भूले हैं,

बस आज में जीते मरते हैं।

कल की पीढ़ी का क्या होगा?

ये फिकर जरा ना करते हैं।


फिजूलखर्ची की आदत ने,

सबको उँगली पे नचाया है।

मस्ती में चूर हर मानव पर,

अपना हुकुम चलाया है।


दिखावे के इस दौर में देखो, 

सबको फैशन का भूत चढ़ा।

ऊँचे ब्रांडों की महफ़िल में,

खर्चे पर खर्चा और बढ़ा।


रिश्तों को सहेजना सीखा ना,

सीखा ना प्रेम जताना।

अपनों और गैरों की खातिर,

सीखा ना पूँजी बचाना।


अपने को ऊँचा दिखाने में,

दौलत पानी सी बहाते हैं।

ना जाने क्यों कल की खातिर,

कुछ भी नहीं बचाते हैं?


कुदरत का खजाना लूट रहे,

ना जाने क्यों बेशर्मी से?

मति भ्रष्ट हो गई जाने कैसे?

मानव जाति की धरती पे।


कर लो नियंत्रण खर्चे पर,

वरना बहुत पछताओगे।

आडम्बर और दिखावे से,

एक दिन रस्ते पर आओगे।


आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया,

का गाना यदि जो गाओगे।

धन दौलत तुमसे रूठेगी,

और जेबें खाली पाओगे।


सदाचार, संस्कार अपनाओ,

जीवन सरल बनाने को।

धन, सम्पदा, स्वास्थ्य बचाओ,

कल को सुखमय बनाने को।


मितव्ययिता को मित्र बना,

उसे प्रेम से गले लगाओ।

आने वाली पीढ़ी के लिए,

उपहारों के ढेर लगाओ।


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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