विश्व शिक्षक दिवस

गुरुदेव समर्पण ममता की है खान,

प्रस्तर को कुंदन करें, कैसे करूँ बखान?

ज्योति पुंज सा, खुद चलकर भी,

तम मिटाते जीवन का, देते ज्ञान।।


गढ़ते हैं नवसृजन, बन कुंभकार,

ज्ञान गंगा से सिंचित कर, डाले जान।

नन्हें-मुन्ने कोरे मन में, अमित अक्षर लिखते,

बबूल सम को, बनाये वो चंदन समान।।


नैतिकता, सदाचार, संस्कारों को जीते,

गुरु ज्ञान से ही बनते, नित नये प्रतिमान।

ख़ारो सा दृढ़ता तो, गुलों की कोमलता देते,

समय चक्रव्यूह तोड़ने का, कराते वो भान।। 


बन दधिचि सा, वो जग कल्याण करें,

युगों-युगों से गुरु का, होता है सम्मान।

वंदन अभिनंदन है, श्री चरणों में गुरुवर,

बेशऊर को आपने, बनाया जो  इंसान।।


रचयिता

वन्दना यादव "गज़ल"
सहायक अध्यापक,

अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,

विकास खण्ड-डोभी, 
जनपद-जौनपुर।

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