घर-घर दिया जरूर जलाना

घर में  दिया  जले न जले

उर में दिया जरूर जलाना,

अज्ञान तमस मिटाना है तो

अक्षर दिया जरूर जलाना।


सब पढ़ें और सब बढें को

है सार्थक अगर उसे बनाना,

निपुण लक्ष्य को पाना है तो

स्कूल में दिया जरूर जलाना।


जब हर नारी ही 'लक्ष्मी' है

नारी ही  है शक्ति  स्वरूपा,

नारी के  सम्मान के खातिर

घर-घर दिया जरूर जलाना।


समृद्ध, सशक्त व महान बने

गौरवशाली प्यारा देश हमारा,

राष्ट्र के प्रहरी जिधर से गुजरें

उस पथ दिया जरूर जलाना।


हे भारत के धन-मन बाँकुरों

धन पानी जैसा नहीं बहाना,

गरीबों की झोपड़ी में जाकर

प्रेम का दिया जरूर जलाना।


रचयिता
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश',
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, 
विकास खण्ड-लक्ष्मीपुर, 
जनपद-महराजगंज।

Comments

Total Pageviews