हिंसा और अहिंसा

 हिंसा केवल वह नहीं, हनते  जिससे  प्रान।

दुख पहुँचाना जीव को, है  हिंसा की  खान।।

है हिंसा की खान, वृत्ति-दुर  थापित  करना।

स्वार्थ सिद्ध के हेतु, दिमागों में  भ्रम भरना।।

अहितभाव"निरपेक्ष", त्यागिये कुत्सित मंशा।

"सभी सुखी हों"भाव, कहाता मित्र!अहिंसा।।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।



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