आदर्श अटल

ये आसमान के आँसू भी, सूखे क्यों नहीं बरस रहे हैं।
कुछ गरज-गरजकर ठहर गये, वो मेघ कहीं नहीं दिख रहे हैं।।

1-ये विश्व पटल पर भारत की है, छाप बनाने वाले अटल।
   करता प्रणाम भारत का जन मानस, महान विभूति को निश्छल।।

2- सूरज की किरणें भी छूने, तपती गर्मी बन आई हैं।
 जिसके लहू की हर बूँद में भारत की, रज की खुशबू पाई हैं।।

3- रे ! वक्त ठहर मेरा मस्तक, न झुका कभी, न झुकने देना।
 मेरे भारतवासी जन को, पर्व स्वतंत्रता का मनाने देना।।

4-  मैं डरता नहीं हूँ मौत से फिर भी, अभिलाषा हो पूरी है।
मेरा तन-मन-धन भारत की ही, शान में जाए जरूरी है।

5 - आज एक युग का कर अंत, नहीं अटल जी हैं जा रहे।
नीति, नैतिकता, राष्ट्र प्रेम की सीख यहाँ विखरा है गये।।

6- हे ईश मेरे भारत को देना, सदा अटल सा नेक दिल।
विश्व में लेकर जाऐ शिखर पर, भारत उन्नत कर हर पल।।

7- अर्पण करती "नैमिष" नमन कर, अश्रु पुष्प सादर श्री अटल।
मम् पिताश्री के आदर्श पुरुष, पित को खोकर भी हूँ विह्वल।।         

8- नतमस्तक हूँ मानवता के, जिसमें है भाव कहीं दिखते।
परिवार, समाज, राष्ट्र का गौरव, बढ़े तभी जब ये गुण होते।।
         
रचयिता
श्रीमती नैमिष शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय-तेहरा,
विकास खंड-मथुरा,
जिला-मथुरा।
उत्तर प्रदेश।

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