एक अटल ख़ामोशी

सागर उमड़-उमड़
पाँवों को धो रहा,
प्रभु की ही चाल रही
जो हीरे की पौध को
ग्वालियर में बो रहा,
हिन्द धरा आनंदित रही
गर्व से फूला अम्बर,
भारत रत्न अवतरित हुआ जब
ईसा 24, तारीख 25 माह दिसम्बर,
हवा में हया का समावेश
मिट्टी की खुशबू में मदहोशी,
एक अटल ख़ामोशी।।

बेबाक वक्ता बन संसद में
वाणी हास परिहास परिपूर्ण,
जैसे लड़े अकेला अभिमन्यु सा
व्यक्तित्व शूरवीर ओजपूर्ण,
धमक दिखाई मातृ भाषा की
UNO का भाषण पहला हिन्दी,
भाषाएँ भी नमन करती थी
अवधी, बृज या हो सिन्धी,
नाक नीचे पोखरण घटा
दिखा ठेंगा अमरीका को,
दमखम देख पड़ोसी रोये
शौर्य दिखाया दुनिया को,
लाहौर सेवा शुरू करवाई
लिए शिशु मुस्कान
बना माहौल गर्मजोशी,
एक अटल ख़ामोशी।।

बहती नदी की धारा को
बंजर खेतों में मोड़ दिया,
बना स्वर्णिम चतुर्भुज देश में
शहर गाँव को जोड़ दिया,
द्रविड़ तमिल की धरती को
अथक प्रयास से किया आबाद,
वर्षों की बनी समस्या थी
सुलझाया कावेरी जल विवाद,
कारगिल की शौर्य गाथा
कौन नहीं समझता है,
मस्त सा दिखने वाला केसरी
जब गरजता है
बहुत गरजता है,
श्रद्धाजंलि अब उस वीर को
अब कृपाण शांत हुई,
लुटियन के बने भवन में
एक गली एकांत हुई,
शब्द निःशब्द हुए उनके
पर भाव में अब भी सरफ़रोशी,
एक अटल ख़ामोशी।।

रचयिता
योगेश कुमार,
सहायक अध्यापक,
नंगला काशी 
विकास खण्ड-धौलाना,
जनपद-हापुड़।

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