आत्म संतुष्टि

कुछ कर गुजरे ऐसा
जिससे हमें नाम न मिले
पर मिले आत्म संतुष्टि
सुनें अपनी अन्तरात्मा की आवाज
जो सदैव कहती है
कुछ कर गुजरने को
पर कुछ मजबूरियाँ,
कुछ सामाजिक बंदिशें,
जो रोकती हैं राहें,
उन बंदिशों को तोड़,
कुछ कर गुजरें ऐसा,
जिससे हमें नाम न मिले,
पर मिले आत्म संतुष्टि,
मन में है अगर विश्वास,
तो कामयाबी कदम चूमेगी,
पर जरुरी है राह के कंटकों को हटाना,
सफलता असफलता तो है हमसफर,
और हमसफर तो सदा साथ रहता है।
कुछ कर गुजरे ऐसा जिससे हमें नाम न मिले
पर मिले आत्म संतुष्टि।

रचयिता                                  
चंचला पाण्डेय,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसीरपुर, 
विकास खण्ड-बिलरियागंज, 
जनपद-आज़मगढ़।

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