अटल अशेष

जो होनी थी वह हो गयी
चुके नहीं, तुम हो अटल,
यह सत्य, आत्मा है व्यथित
हा! यह हृदय भी विकल,

मुख में तुलसीे पर्ण लिए
अमृत रूप में गंगाजल,
भवसागर के उस पार
चलते जाना अविचल,

जब शैया पर आँखे मूँदे
तुम देखोगे तीनों ही लोक,
अग्नि, धूम्र, आकाश बने
जल में बह, होंगे भूलोक,

जनमानस के स्पंदन में,
तुम शेष रहोगे हे नरश्रेष्ठ!
तुम व्यापित हर कण में
हे अटल! हे अमर अशेष!

राजनीति_के_अजातशत्रु_अमर_भारतपुत्र_अटल_जी_को_समर्पित

रचयिता
यशोदेव रॉय,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय नाउरदेउर,
विकास खण्ड-कौड़ीराम, 
जनपद-गोरखपुर।

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