कहानी एक आम के पेड़ की

स्कूल की छुट्टी होते ही सभी बच्चे आम के पेड़ के नीचे खेलने पँहुच जाते। बच्चे पत्थर मारकर कभी इसके पत्तों को गिरा देते  तो कभी पेड़ पर चढ़कर उसकी टहनियों को तोड़ देते। कुछ बच्चे पेड़ के नीचे की जमीन को अपने नन्हे हाथों से साफ करके घरोंदे बनाते तो कुछ गिप्पी खेलते कुछ गोली कंचे खेलते। यह सिलसिला पूरे साल चलता रहता। पेड़ में फल आने के समय तो बच्चों की शैतानी और भी बढ़ जाती। पत्थर मार मारकर फल गिराने की कोशिश पूरे दिन चलती रहती और फिर जब आम पकने लगते तो बच्चे पके फल खाकर खूब खुश होते। लेकिन पेड़ पर पीठर मारकर पत्तियाँ, टहनी और फल गिराने का सिलसिला यूँ ही चलता रहता और आम का पेड़ चुपचाप यह सब सेहत रहता।
        यह सब देखते हुए नीम के पेड़ से नहीं रहा गया और उसने आम के पेड़ से कहा कि ये बच्चे रोज पत्थर मार-मार कर तुम्हें चोट पहुँचाते हैं फिर भी तुम इन्हें मीठे फल देते रहते हो।तुम्हें कष्ट नहीं होता। यह सुनकर आम के पेड़ ने कहा कि तुम नहीं समझोगे। इन बच्चों को खुश देखकर मुझे इतनी ख़ुशी मिलती है कि मैं अपनी  चोट और पीड़ा भूल जाता हूँ। जिस दिन ये बच्चे नहीं आते मुझे बहुत सूना सूना लगता है। मैं रोज इनके आने का इंतजार करता हूँ। मैं अपने आप को धन्य समझता हूँ कि इन बच्चों को ख़ुशी दे पाता हूँ। याद रखना जो सुख देने में है वह लेने में नहीं। किसी को ख़ुशी देने में जो सुख और संतोष मिलता है वह अनमोल है।

लेखिका
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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