वरदान माँगती हूँ

सदा खुश  रहो मैं दुआ चाहती  हूँ,
तेरी  सलामती  का  वरदान  माँगती हूँ।
 
 रोली  का  लाल  टीका  माथे पर तेरे  लगाकर,
दिल  के  हर  अरमां  को आँखों में  सजाकर।
दुनिया  की  हर खुशी  और  बुलन्दियों  को छू  लो,
यह  अरमान  चाहती  हूँ।
तेरी  सलामती  का  वरदान  माँगती  हूँ।

ये  रेशम  का धागा  नहीं है,
रक्षाकवच है  भैया
हर बाधाओं से  दूर रखें,
सदा   तुम्हें ये  भैया।
खुशियों  का  मैं  तेरे  भंडार  चाहती  हूँ।
तेरी सलामती का वरदान माँगती हूँ।

दीपक  सजी ये  थाली,
मै  तेरी  आरती  उतारूँ।
मनोकामना  है मेरी,
हर  बला  से बचा लूँ।
तेरे  जीवन के हर  सफर  को खुशहाल  चाहती  हूँ।
तेरी सलामती का वरदान माँगती हूँ ।

रिश्ते  हैं  बहुत इस  दुनिया में,
पर  इससे  अनमोल  न  कोई।
इस  अनमोल  रिश्ते  का,
एहसास  चाहती  हूँ।
तेरी सलामती का वरदान माँगती हूँ।

रक्षाबंधन के  शुभ अवसर पर,
यह पैगाम  भेजती  हूँ।
यह  धागा  नहीं है  भैया,
मै  प्यार  भेजती  हूँ।
तेरी सलामती का वरदान माँगती हूँ।

सदा  खुश रहो मैं दुआ चाहती हूँ।
तेरी सलामती का वरदान माँगती हूँ।

रचयिता
बिधु सिंह, 
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गढी़ चौखण्ड़ी, 
विकास खण्ड-बिसरख,               
जनपद-गौतमबुद्धनगर।

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