पंद्रह अगस्त सन् सैंतालीस की वो सुबह

पंद्रह अगस्त सन् सैंतालीस की, वो सुबह निराली थी
 देश की सीमा पर जब, भारतीयों ने कमान संभाली थी

अंग्रेजों भारत छोड़ो का हुआ, बुलंद जब नारा था
हर बूढ़े और बच्चे को बस, हिंदुस्तान ही प्यारा था

क्या महिला क्या पुरुष, जवानी भारत के ही नाम थी
जिस जनता ने जान गँवायी, वह भी खासो आम थी

क्रांति और अहिंसा, दोनों  ने मिलकर सहयोग किया
आजादी की खातिर सबने,अपना जीवन झोंक दिया

फाँसी पर भी कितने, आजादी के  दीवाने  झूल गये
बस एक लक्ष्य की खातिर,अपना सबकुछ भूल गये

हुआ देश आजाद सुनहरी, सुबह भी  देखी  सबने
सतरंगी नभ हुआ लगे सब, भारत माँ की जय कहने

बलिदान कभी  न वीरों का  हम  खाली यूँ जाने  देंगे
यह आजादी कायम रखने को अपनी  जान गँवा देंगे

रचयिता
डा0 रश्मि दुबे,
प्राथमिक विद्यालय उस्मान गढ़ी,
जनपद-गाजियाबाद।

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