रक्षाबंधन

लो आ गया सावन कि सबको बाँध दो स्नेह बंधन
माथे तिलक लगाओ और करो वीर का नेह वंदन
प्रीति यूँ फलती  रहे  सिर माथ पर लगा हो चंदन
न कोई बहना आज तड़पे न मन करे उसका क्रंदन

नेह   के  धागे   से  बाँधें   अपने रिश्तों  को  सभी
जा रहे हैं खोते  सारे  स्नेह  बंधन अहमियत कभी
रह न जाये  ख्वाहिश  कोई तू बोल दे बहना अभी
कि  मैं तेरी  रक्षा के लिये हाजिर रहूँ तू  बोले जभी

है  पुरातन  रीति  ये  जो  भाई  बहन  का प्यार  है
ये सूत्र अलौकिक है सदा ही और नेह का भंडार है
भाई बहन पर, बहन अनुज पर ही सदा बलिहार  है
लेके रक्षा सूत्र बाँधें, मिलें सभी ऐसा ये  त्यौहार  है

रचयिता
डा0 रश्मि दुबे,
प्राथमिक विद्यालय उस्मान गढ़ी,
जनपद-गाजियाबाद।

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