बसंत
नयन खिल उठे देख ऋतु को
पीला-पीला बसंत है,
झूम के गीत गा रही पवन
बहकी-बहकी उमंग है|
बसंती धरा, झूमे सरसों
दिखे हरियाला चमन है,
खिली धरती कई रंगों से
रंग का अनुपम मिलन है|
मधुमासी लावण्य माह है
धानी चुनर लहराए,
पेड़ों की है खिली कोपले
आमों पर बौरे आए|
श्यामा कोयल कुहुक रही है
मधुर-मीठा रस घोलती,
रंग-बिरंगी दिखती तितली
कली-फूलों पर डोलती|
बागों में फूलों का मौसम
भँवरे मंडाराते हैं,
देश छोड़ जो गए परदेस
वो पक्षी लौट आते हैं|
लंबी रातें खत्म हो चलीं
सुहावने दिन आए हैं,
चमके हैं हरित से उजाले
हर्षित मन बौराये है|
करे श्रृंगार यह जग सारा
स्नेही रंग में छा रहा,
प्रेमी जोड़ा मगन नीड़ पर
बासंती गीत गा रहा|
रचयिता
संगीता गौतम जयाश्री,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय ऐमा,
विकास खण्ड-सरसौल,
विकास खण्डजनपद-कानपुर नगर।
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुंदर