बसंत
आया बसंत,
छाया बसंत,
जमीं-आसमां मुस्कुरा रहे,
देख प्रकृति का अनुपम श्रृंगार।
पीले-पीले खेत और खलिहान,
मानो दे रहे मन्द-मन्द मुस्कान,
देख उनको बढ़ा न जाए,
ठिठक ही जाए हर इंसान।
ऐसा खुमार,
हो वर्ष में एक ही बार,
पर बन जाए,
पूरे वर्ष एक यादगार।
आया बसंत,
आ जाए हर दिल में धड़कन,
सुर हो जाएँ सुरीले,
थिरकने लगें पशु-पक्षी और इंसान।
कर लो कैद बसंत,
मन के एक झरोखे में तुम,
जब झाँके कोई उदासी,
कर दे वो प्रफुल्लित सूना मन-आँगन।
संगीत की देवी ने मुस्कुरा कर,
रख दिया वीणा पर जब हाथ,
लगी झूमने प्रकृति,
सुन देवी की मधुर तान।।
रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।
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