बसन्त पंचमी

नमन करूँ मैं शारदे, राखो मेरी लाज।

 कंठ-कंठ में माँ भरे, सदा सुरीला साज।।

 

 बना मुझे वाचाल दे, सस्वर बोलूँ आज

 सात सुरों के गान से, आज बजाऊँ साज।। 


 ऋतु बसंत की आ गई, पूजन कर लो भक्त,

 पीत पुष्प की माल से, करें मात आशक्त।।


 प्रिय बसंत ऋतु आ गई, बहती प्यारी वात।

 फूल वृक्ष सब झूमते, हिले जोर से पात।।


 क्यारी न्यारी लग रही, खिले पुष्प सब रंग।

 भौंरे गाना गा रहे, प्रिय कलियों के संग।।


 हरियाली से भू सजी, झूम रहा है व्योम। 

 चले बसंती जो हवा, पुलकित होता रोम।।


 ऋतु बसंत मन भाविनी, नर नारी हरषाय। 

 सुमिरन प्रियतम को करें, धीरज तनिक न आय।। 


 कोयल गाना गा रही, चहुँदिशि गूँजे गीत।

 हर मानव अब झूमता, लिए संग मनमीत।।


 फूलों की खुशबू बहे, लेकर संग समीर।

 कल-कल करती है नदी, आनंदित है नीर।


 नव पल्लव विकसित हुए, कली रहीं मुस्काय। 

 है किसान तैयार अब, फसल काटने जाय।। 


 पीली चादर से ढके, सरसों के यह खेत।

 तितली मधुमक्खी सभी, मजा फूल का लेत।। 


रचयिता

गीता देवी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,

विकास खण्ड- बिधूना, 

जनपद- औरैया।



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