संत रविदास
जातिवाद और आध्यात्मिकता का किया विरोध,
जीवन की छोटी घटनाओं से सीखा करना विरोध।
ईश्वर भक्ति के नाम पर विवाद है सारहीन,
मन चंगा तो कठौती में गंगा सभी से था अनुरोध।।
सतगुरु, जगतगुरु कहते थे इनको इनके सेवक,
दया दृष्टि, सौम्य स्वभाव से बन गए थे अनेकों सेवक।
माघ पूर्णिमा को काशी में गुरु रविदास प्रकटे,
व्यवहारिक ज्ञान पाए सभी जन बताए एक।।
परोपकारी तथा दयालु रहे संत रविदास,
उनकी संगति में सबको था प्रसन्नता का आभास।
मधुर, भक्ति पूर्ण रचना में रहते थे वह मगन,
शंकाओं के समाधान से पूरी करते आस।।
जन्म, व्यवसाय, जाति पर न हो मनुष्य का आँकलन,
सद्व्यवहार ही जगाते हैं मनुज का ईश से मिलन।
मीराबाई भी प्रभावित थीं, बन गई इनकी शिष्या,
40 पद गुरु ग्रंथ साहिब में, अर्जुन साहिब किए संपादन।।
समाज में प्रचलित कुरीतियों का किया था अंत,
ईश्वर की महिमा का है नहीं कभी अंत।
आत्मज्ञान, एकता और भाईचारे का दिया संदेश,
महापुरुष रविदास की गाथा रहेगी दिक दिगंत।।
रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
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