विश्व दिव्यांग दिवस
तर्ज:- अभी जिन्दा हूँ तो जी लेने दो
दिव्यांग के होने से,
कोई अंग के खोने से।।
दिव्यांग के होने से,
कोई अंग के खोने से।।
रुकती नहीं प्रतिभा है
अभाव के होने से।।
दर्द हमको ये झेल लेने दो,
फिर भी आगे हमें बढ़ लेने दो।।
दिसम्बर है तीन,
कितना है बेहतरीन।।
दिसम्बर है तीन,
कितना है बेहतरीन।।
दिव्यांगों के लिए भी,
यह धरती और जमीन।।
ये हमको न झुका पायेगी,
मौत भी हमसे मुँह की खाएगी।।
चलती गाड़ी से जिसको फेंका था,
कटे हुए पैर का दर्द झेला था।
बछेन्द्री पाल से जा मिलती है,
मन में उमंग देखो खिलती है।।
माउंट एवरेस्ट को लांघ दिया,
नाम उसका अरुणिमा सिन्हा।
गिरीश शर्मा चैंपियन है।
खेल देखो बैडमिंटन है।।
बचपन में टाँग खोई थी,
बैडमिंटन को आँख रोई थी।
मेहनत की, सपने पाने को,
अभी हमें और खेल लेने दो।।
रचयिता
सुधांशु श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मणिपुर,
विकास खण्ड-ऐरायां,
जनपद-फ़तेहपुर।
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