बचपन
बचपन के दिन चार
कट जाते
बाँट हँसी खुशी प्यार।
गुड्डे गुड़ियों से खेलना
जब दिल करे सोना
तितलियों के पीछे भागना
नहीं चिंता कल क्या होगा?
माँ पिता की आँखों के तारे
दादा दादी के दुलारे
नहीं पड़ते जमीं
पर कदम हमारे।
परियों की कहानियाँ सुनना
रोज रात तारों को गिनना
गर्मी की छुट्टियाँ
नाना नानी के घर बिताना।
गाँव की गलियों में
धमा चौकड़ी मचाना
बागों में आम जामुन को
स्वाद ले लेकर खाना।
बस यही यादें हैं बचीं
क्या बालपन
आएगा दोबारा कभी?
रचयिता
सुषमा मलिक,
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट स्कूल सिखेड़ा,
विकास खण्ड-सिंभावली,
जनपद-हापुड़।
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