हम भी अगर बच्चे होते
हम भी अगर बच्चे होते आज कल के
खेल कूद कर, खा पी कर, न रहते मुस्तैद
भूल भाल कर ये असली दुनिया
एक डिजिटल दुनिया में हो जाते कैद
न कभी खेल पाते स्टापू और गिट्टे
न उधम मचा मचा कर खेलते खेल
घर के एक कोने में पड़े रहते
और खेलते रहते बस फोन में खेल
भूल जाते सारी स्कूल की दोस्ती
और न रहती दोस्तों से मिलने की आस
न होती दोस्तों से कापियाँ लेनी देनी
रजाई में घुसकर लैपटॉप में लेते क्लास
क्या होती हैं स्वच्छ नदियाँ न देख पाते
न जान पाते कैसी होती है शुद्ध हवा
इसके बारे में पढ़ते किताबों में हम
प्रदूषण में रहकर ऑनलाइन मँगाके खाते दवा
रचयिता
भावना तोमर,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय नं०-1 मवीकलां,
विकास खण्ड-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।
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