विश्व टेलीविजन दिवस

"अरे!एंटीना इस साइड में करो!अरे नहीं सीधा रखो, अभी नहीं आया साफ। हाँ! अब आ गया है जल्दी आओ नीचे।"


कुछ याद आया  1980, 90 के दशक में जब सिर्फ एंटीना के सहारे टीवी चला करती थी और हम दूरदर्शन देखा करते थे। जब भी हमारा एंटीना खराब होता था हम परेशान हो जाते थे और हमारा कार्यक्रम निकल जाता था। चाहे रामायण हो या महाभारत और हम सब बैट्री से टीवी चलाया करते थे।


 हर कोई एक दूसरे के घर पर देखने के लिए भीड़ लगा लिया करता था। उस समय सिर्फ दूरदर्शन था और उस पर आने वाले कार्यक्रम हमारे लिए बहुत खास होते थे और वह दूरदर्शन पर समाचार पढ़ने वालीं सलमा सुल्तान क्या बात थी उनकी। अब तो बहुत ही हल्का सा याद है।


हम लोग उस समय जंगल बुक, पोटली बाबा की, मियाँ गुमसुम और बत्तो रानी की कहानी रविवार के दिन नहीं छोड़ते थे। अब दूरदर्शन कहीं खो सा गया है। शायद उसकी वजह डिश टीवी है जिसमें कि बहुत सारे चैनल आने लगे हैं। रिमोट उठाया अब यह नहीं देखना है उसे बदला इसे बदला। पहले वाली टीवी भी नहीं रही जो मेज पर रखी रहती थी। अब दीवार पर लटकाने वाली टीवी आ गई है। टीवी की कहानी बहुत पुरानी है।
 


17 दिसम्बर 1996 को विश्व टेलीविजन दिवस घोषित हुआ।


दूरदर्शन पर पहला प्रसारण 15 सितंबर 1959 को आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रम शुरू किए गए। 1975 में "टेलीविजन इंडिया" से इसका नाम "दूरदर्शन" कर दिया गया। 


"दूरदर्शन" नाम लोगों को इतना पसंद आया कि इसकी लोकप्रियता बहुत बढ़ गई। वर्तमान में मीडिया की सबसे बड़ी ताकत टीवी ही है। संचार और सूचना माध्यम में टीवी का बहुत बड़ा योगदान है। समय बदलने के साथ-साथ सब कुछ बदलता चला गया। जब कभी भी हमें समय मिलता है मनोरंजन करने के लिए टीवी का सहारा लेते हैं। धीरे-धीरे हर चीज का विकास होता जाता है और हम उस विकास का हिस्सा बनते चले जाते हैं क्योंकि -----


"परिवर्तन ही संसार का नियम है।"


लेखक

शालिनी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय बनी, 

विकास खण्ड-अलीगंज,

जनपद-एटा।

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