सूर्योदय
उगे सूर्य जब पूर्वी गगन से ,
मैं एकटक देखा करती हूँ।
तरह -तरह के रंग बदले वो ,
छटा मैं देखा करती हूँ।
किसने बनाया होगा इसको ,
चमक भी किसने दी होगी ?
आकर्षण कितना है इसमें,
अक्सर सोचा करती हूँ ।
अनगिनत किरणें इसकी निराली,
इसके गुण गाती होंगी ।
कलियों तक आकर के वो ,
क्या संदेश सुनाती होंगी ?
उपमा इसकी होगी भी कोई,
प्रश्न मैं करती रहती हूँ ।
यदि कभी ऐसा हो जाए,
सूर्य निकल ही न पाए ।
इस धरती से अम्बर तक,
घना अंधेरा छा जाए।
क्या होगा तब इस विश्व का ,
सोचकर डरती रहती हूँ ।
उगे सूर्य जब पूर्वी गगन से ,
मैं एकटक देखा करती हूँ।
तरह-तरह के रंग बदले वो ,
छटा मैं देखा करती हूँ।
मैं एकटक देखा करती हूँ।
तरह -तरह के रंग बदले वो ,
छटा मैं देखा करती हूँ।
किसने बनाया होगा इसको ,
चमक भी किसने दी होगी ?
आकर्षण कितना है इसमें,
अक्सर सोचा करती हूँ ।
अनगिनत किरणें इसकी निराली,
इसके गुण गाती होंगी ।
कलियों तक आकर के वो ,
क्या संदेश सुनाती होंगी ?
उपमा इसकी होगी भी कोई,
प्रश्न मैं करती रहती हूँ ।
यदि कभी ऐसा हो जाए,
सूर्य निकल ही न पाए ।
इस धरती से अम्बर तक,
घना अंधेरा छा जाए।
क्या होगा तब इस विश्व का ,
सोचकर डरती रहती हूँ ।
उगे सूर्य जब पूर्वी गगन से ,
मैं एकटक देखा करती हूँ।
तरह-तरह के रंग बदले वो ,
छटा मैं देखा करती हूँ।
रचनाकार
अर्चना रानी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुरीदापुर,
शाहाबाद, हरदोई।
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