तुमसे प्रीतम कौन यहाँ

घोर निशा अंगड़ाई बोली
सिलवट पड़ी रजाई बोली
तुमसे प्रीतम कौन यहाँ??
भोर प्रहर तरुणाई बोली
जलते दीपक के लौ बोले
सस्वर सारी खुदाई बोली
तुमसे प्रीतम कौन यहाँ??
नदियाँ बोलीं, बोले सरोवर ,
मेघों की परछाई बोली,
बोली उजली किरण सुनहरी,
बहती तब पुरवाई बोली,
तुमसे प्रीतम कौन यहाँ?
तुम "प्रभात" की "निशा" मनोहर
सृष्टि बिन सकुचाई बोली
तुमसे प्रीतम कौन यहाँ?

रचयिता
प्रभात त्रिपाठी गोरखपुरी,
सहायक अध्यापक,
बेसिक शिक्षा परिषद गोरखपुर।।

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