शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण

मेरे शिक्षक मित्रों
जब तक हम स्वयं को शिक्षक और बालक अपने को शिक्षार्थी मानेंगे तब तक हम बालक का पूर्ण विकास नही कर पाएंगे, क्योंकि ये कही न कहीं दोनों पर एक जिम्मेदारी और दबाव का निर्माण करता है, जिससे दोनों शिक्षा के पूर्ण उद्देश्य को उस रूप में प्राप्त नही कर पाते जिस रूप में उनसे आशा की जाती है।
शिक्षा का उद्देश्य बालक को उसके भावी जीवन के लिए उस स्तर तक तैयार करना है जिस स्तर तक वो अपने  जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त कर सकता हो और समाज को भी उससे उतना ही लाभ प्राप्त हो जितना कि उस बालक को।
वैसे तो शिक्षा बालक का सर्वांगीण विकास करती है, पर कहीं न कहीं ये मुख्य रूप से बालक के मानसिक विकास का पर्याय ही मानी जाती है, अतः ये कार्य एक अध्यापक तब अधिक अच्छे रूप से कर पायेगा जब वो बालक के साथ  मित्रवत व्यवहार करें, क्योंकि बालक के मनोविज्ञान को समझना भी उतना ही अधिक महत्वपूर्ण है जितना उसको शिक्षा देना।
यहाँ ये बात गौर करने वाली है कि मित्रवत व्यवहार हो न कि मित्र रूप में, दोनों स्तर पर थोड़ा बारीक फर्क है जिसे समझना और निर्धारित करना अति आवश्यक है।
यहाँ एक अन्य तथ्य भी समझना अति आवश्यक है, कि हम बालक का विकास क्यों करना चाहते हैं.....?
 वो क्या कारण हैं ....?
जो हम इस कार्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है ।
अर्थात, हमें शिक्षा के  उद्देश्य  निर्धारित करने होंगे और वो उद्देश्य सभी के लिए समान नहीं हो सकते क्योंकि व्यक्तिगत भिन्नता का भी हमे ध्यान रखना होगा, अन्यथा सारी मेहनत निरर्थक सिद्ध होगी। इसके लिये पृथक-पृथक उद्देश्य निर्धारित करना अनिवार्य है तभी हम मूल उद्देश्य को प्राप्त कर सकेंगे।
कुछ लोग कहेंगे कि इस कार्य मे बड़ा समय व धन खर्च होगा तो मैं इतना ही कहूँगा कि नहीं सिर्फ समय और आपकी कार्यकुशलता के साथ धैर्य की आवश्यकता होगी और इस कार्य को करने हेतु बालक के प्रवेश लेते ही एक प्रगति डायरी तैयार की जाएगी जो एक वर्ष की नही वरन पूरे शैक्षिक जीवन की होगी जिसका सतत मूल्यांकन किया जायेगा।
एक बात और मित्रों हमारे स्कूल में क्लास टीचर, क्लास 01 से 05 तक अनवरत वही रहना चाहिए बदलना नहीं चाहिए क्योंकि इससे बाल विकास के कई मूल प्रभावी बिन्दु हम से छूट जाते है, जो बालक के शैक्षणिक विकास को कहीं न कहीं प्रभावित करते हैं जबकि एक अध्यापक बालक को कुछ वर्षों में अच्छे से समझकर जीवन उद्देश्यों के निर्धारण में सहायक हो सकता है। यही कार्य 06 से 08 और 09 से 12 की कक्षाओं में भी  होना चाहिए। इससे बालक को अध्यापक और अध्यापक को बालक को समझने में सहायता मिलेगी और हम प्रभावी रूप से शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त कर पायेंगे तथा जीवन मूल्यों से युक्त एक प्रभावी नागरिक तैयार कर सकेंगे,जो कि अपने साथ समाज हित को समान महत्व देगा ।

लेखक
सुनील पाठक
UPS atrarmaaf
कबरई, महोबा


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