विवेकानंद जी को शत शत प्रणाम
व्यक्ति शिक्षा के उन्नायक समाज हित के नव विहान,
श्री विवेकानंद जी को शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
आप मनुज नहीं, थे मगर देव खद्योत नहीं पावन नक्षत्र,
आप अपनी त्याग तपस्या से नभ में चमकोगे सर्वत्र,
हो सकती नहीं योजना उऋण, पहुंचाया आपने जिस मुकाम,
ऐसी पुण्यात्मा को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशःप्रणाम।
अंतस में करुणा अधरों पर हास सत्य निष्ठा कर्म में विश्वास,
सादा जीवन मन में भी आस सहज मृत्यु वरण ली अंतिम सांस,
छोड़ जगत में अपने पदचिन्ह, शून्य में हो गए आप अंतर्ध्यान
श्रद्धेय कर्तव्यनिष्ठ को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
वर्तमान आपकी आंखों में था और हृदय में था अतीत,
भावी सपनों को लिए हुए बढ़ते रहते थे ग्रीष्म शीत,
मस्तक से टपकते श्रम-बिन्दु, कहते थे अंतस की व्यथा महान
ऐसे प्रेरणा स्रोत को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
अपने श्रम गहरी निष्ठा से फहराया शिक्षा का परचम,
ज्ञान के प्रकाश से हटा दिया तुमने जन मन का गहरा तम,
किस तरह भावांजलि भेंट करूं हे ज्योति पुंज नयनाभिराम,
पावन शिक्षा पुंज को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
प्रस्तुत भावों की तुच्छ भेंट स्मृति में अर्पण करती हूँ,
इन टूटे फूटे शब्दों से श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ,
हम सबके प्रिय हे! गुरुदेव स्वीकार करो श्रद्धापूर्ण प्रणाम,
मेरे पूज्य गुरु जी को हम सब का प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
रचयिता
विदिशा मन्द्रेश पंवार,
सहायक शिक्षिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय जतुली,
विकास खंड-हरियावां,
जनपद-हरदोई।
श्री विवेकानंद जी को शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
आप मनुज नहीं, थे मगर देव खद्योत नहीं पावन नक्षत्र,
आप अपनी त्याग तपस्या से नभ में चमकोगे सर्वत्र,
हो सकती नहीं योजना उऋण, पहुंचाया आपने जिस मुकाम,
ऐसी पुण्यात्मा को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशःप्रणाम।
अंतस में करुणा अधरों पर हास सत्य निष्ठा कर्म में विश्वास,
सादा जीवन मन में भी आस सहज मृत्यु वरण ली अंतिम सांस,
छोड़ जगत में अपने पदचिन्ह, शून्य में हो गए आप अंतर्ध्यान
श्रद्धेय कर्तव्यनिष्ठ को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
वर्तमान आपकी आंखों में था और हृदय में था अतीत,
भावी सपनों को लिए हुए बढ़ते रहते थे ग्रीष्म शीत,
मस्तक से टपकते श्रम-बिन्दु, कहते थे अंतस की व्यथा महान
ऐसे प्रेरणा स्रोत को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
अपने श्रम गहरी निष्ठा से फहराया शिक्षा का परचम,
ज्ञान के प्रकाश से हटा दिया तुमने जन मन का गहरा तम,
किस तरह भावांजलि भेंट करूं हे ज्योति पुंज नयनाभिराम,
पावन शिक्षा पुंज को मेरा शत शत प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
प्रस्तुत भावों की तुच्छ भेंट स्मृति में अर्पण करती हूँ,
इन टूटे फूटे शब्दों से श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ,
हम सबके प्रिय हे! गुरुदेव स्वीकार करो श्रद्धापूर्ण प्रणाम,
मेरे पूज्य गुरु जी को हम सब का प्रणाम कोटिशः प्रणाम।
रचयिता
विदिशा मन्द्रेश पंवार,
सहायक शिक्षिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय जतुली,
विकास खंड-हरियावां,
जनपद-हरदोई।
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