आया बसन्त छाया बसन्त
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन में उमंग लाया बसन्त।
खिल उठी कली-कली,
महक उठी गली-गली।
सरसों की सुगन्ध है छा रही,
पुलकित हों पुष्प, चहकें विहंग।
आया बसन्त छाया बसन्त।।
माँ सरस्वती की वीणा के स्वर,
धरती ये कहे पुकार कर।
चहुँ ओर खुशियाँ छा रहीं,
देखो अनन्त, देखो अनन्त।
आया बसन्त छाया बसन्त।।
शीतल मन्द समीर बहे,
जाकर दिनकर से ये कहे।
कर रही प्रकृति श्रंगार है,
वसुधा ने है ओढ़ा पीत रंग।
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन में उमंग लाया बसन्त।।
रचयिता
मन में उमंग लाया बसन्त।
खिल उठी कली-कली,
महक उठी गली-गली।
सरसों की सुगन्ध है छा रही,
पुलकित हों पुष्प, चहकें विहंग।
आया बसन्त छाया बसन्त।।
माँ सरस्वती की वीणा के स्वर,
धरती ये कहे पुकार कर।
चहुँ ओर खुशियाँ छा रहीं,
देखो अनन्त, देखो अनन्त।
आया बसन्त छाया बसन्त।।
शीतल मन्द समीर बहे,
जाकर दिनकर से ये कहे।
कर रही प्रकृति श्रंगार है,
वसुधा ने है ओढ़ा पीत रंग।
आया बसन्त छाया बसन्त,
मन में उमंग लाया बसन्त।।
रचयिता
आरती साहू,
सहायक अध्यापक,
प्रा0 वि0 मटिहनियाँ चौधरी,
विकास खण्ड-सदर,
जनपद-महराजगंज।
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