मकर संक्रान्ति
मकर संक्रान्ति आई है,
खुशियाँ अपार ये लाई है।
ठण्डी ठण्डी हवा चल रही,
कहीं पीली सरसों फूल रही।
कहीं तिलगुड़ की खुशबू आये,
कहीं दही चूड़ा कोई खाये।
हर तरफ ही रौनक छाई है।।
मकर संक्रान्ति आई है,
खुशियाँ अपार ये लाई है।
रंग-बिरंगी पतंग उड़ रही,
सजे संक्रान्ति के मेले हैं।
खिल रहे हैं सबके ही चेहरे,
ढंग सबके ही अलबेले हैं।
प्रकृति ने ली अँगड़ाई है।।
मकर संक्रान्ति आई है,
खुशियाँ अपार ये लाई है।।
खुशियाँ अपार ये लाई है।
ठण्डी ठण्डी हवा चल रही,
कहीं पीली सरसों फूल रही।
कहीं तिलगुड़ की खुशबू आये,
कहीं दही चूड़ा कोई खाये।
हर तरफ ही रौनक छाई है।।
मकर संक्रान्ति आई है,
खुशियाँ अपार ये लाई है।
रंग-बिरंगी पतंग उड़ रही,
सजे संक्रान्ति के मेले हैं।
खिल रहे हैं सबके ही चेहरे,
ढंग सबके ही अलबेले हैं।
प्रकृति ने ली अँगड़ाई है।।
मकर संक्रान्ति आई है,
खुशियाँ अपार ये लाई है।।
रचयिता
आरती साहू,
सहायक अध्यापक,
प्रा0 वि0 मटिहनियाँ चौधरी,
विकास खण्ड-सदर,
जनपद-महराजगंज।
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