इक विवेकानंद आ जाए
जो जीवन पुष्प में मधुमास का मकरंद आ जाए,
तो हर आंगन से चलकर इक विवेकानंद आ जाए।
मिटाकर कालिमा शिक्षा-सृजन के बीज हम बो दें ,
कहीं अमरत्व की आराधना के क्षण न हम खो दें।
हमारी वन्दना में साधना का छंद आ जाए,
तो हर आंगन से चलकर इक विवेकानंद आ जाए।
गुरु में राम की भी कृष्ण की भी भंगिमा संवरे,
हमारी अस्मिता का ध्वज गगन में गर्व से फहरे।
मिटे चिंता मनुज की भाव में आनन्द आ जाए,
तो हर आंगन से चलकर इक विवेकानंद आ जाए।
नमन उस योग को उस प्रेम को उनके विचारों को,
नमन इस भारती के भाल के जगमग सितारों को,
जगत में विश्व के बंधुत्व का स्पन्द आ जाए,
तो हर आंगन से चल कर इक विवेकानन्द आ जाए।
जो जीवन पुष्प में मधुमास का मकरंद आ जाए ।
तो हर आंगन से चलकर एक विवेकानन्द आ जाए ।।
रचयिता
गौरव मिश्र,
सहायक शिक्षक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय पेंग,
विकास क्षेत्र-सुरसा,
जनपद-हरदोई।
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