51/2024, बाल कहानी- 22 मार्च



बाल कहानी- जंगल की सैर
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एक दिन रामू और श्यामू रविवार को जंगल में घूमने गये। जंगल बहुत ही घना था। वहाँ तरह-तरह के पक्षियों का कलरव जंगल में कोलाहल पैदा कर रहा था। रामू बोला-, "यार श्यामू! मैं तो समझता था कि हम लोग ही शोर मचाते हैं। ये पक्षी तो हमसे भी अधिक कोलाहल मचा रहे हैं।"
"लेकिन इनका कलरव कितना सुखद लगता है। इनसे ही तो जंगल में चहल-पहल रहती है।"
श्यामू ने कहा। 
रामू ने कहा-, "वह सब तो ठीक है, लेकिन इनका कोलाहल तो बन्द ही नहीं होता है?" 
श्यामू ने जबाब दिया-, "जंगल में अगर पक्षियों का कोलाहल न हो, तो जंगल ही कैसा।"
"हाँ! ये तो सही है। अच्छा, चलो! आगे चलते हैं।" रामू इतना कहकर श्यामू के साथ आगे बढ़ गया। दोनों मित्र जंगल में चारों ओर देखते हुए आगे बढ़ रहे थे, तभी एकाएक किसी के घुरघुराने की आवाज आयी। दोनों भयभीत हो एक-दूसरे को देखने लगे। जैसे ही उन दोनों ने बड़े गौर से बगल में देखा तो वे दंग रह गये। एक सर्प नेवले के मुँह को फन से दबाए हुए था। नेवला छटपटाते हुए घुरघुरा रहा था। उसने सर्प की पकड़ से छूटने की बहुत कोशिश की, लेकिन सर्प की पकड़ से वह मुक्त न हो सका। रामू और श्यामू ने एक-दूसरे को देखा और आपस में इशारा किया। वे दोनों छिपते हुए आगे बढ़ गये। पास ही में एक बड़े वृक्ष की ओट में खड़े होकर रामू ने एक लंबा डंडा तोड़ा और मौका देखकर सर्प पर हल्के से प्रहार किया। डंड़े की चोट से सर्प तिलमिला गया और उसकी पकड़ ढ़ीली हो गयी। नेवला तुरन्त सर्प की पकड़ से छूटकर भाग गया। सर्प ने इधर-उधर देखा और नेवले को न पाकर वह भी वहाँ से धीरे-धीरे रेंगकर एक वृक्ष के नीचे बने बिल में घुस गया।
श्यामू ने कहा-, "चलो! अब घर चलते हैं, अन्यथा अगर सर्प की हम दोनों पर नजर पड़ गयी तो फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जायेंगे।"
"हाँ, चलो! अब रुकना ठीक नहीं है।" दोनों मित्र जल्दी से वहाँ से घर की ओर चल पड़े। घर आकर उन्होंने अपने माता-पिता को सारी बातें बतायीं। उनके माता-पिता ने उन्हें भविष्य में जंगल में इस तरह अकेले घूमने से मना किया और उन्हें जंगल के खतरों से आगाह किया। रामू और श्यामू ने प्रण किया कि वह भविष्य में कभी भी अकेले जंगल में नहीं जायेंगे। लेकिन उन्हें इस बात की खुशी और सन्तुष्टि थी कि उन्होंने एक जीव की जान बचायी। जो किसी की रक्षा करता है, उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं।

संस्कार सन्देश-
छोटे बच्चों को बिना बड़ों को साथ लिए जंगल में नहीं जाना चाहिए।

लेखिका-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)
कहानी वाचक
नीलम भदौरिया
फतेहपुर

✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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