होली तेरी बात निराली

होली तेरी बात निराली,

लगती हो तुम कितनी प्यारी।

कोई तो खेले गुलाल से, 

कोई हाथों में ले पिचकारी।।


उड़े अवध का गुलाल नभ में,

रंग जाएँ मस्ती में नर-नारी।

छिपाये कोई मुखड़ा अपना,

कोई रंगीला रंगे देह सारी।  

 

रंगे चेहरों में सब,

एक मय हो जाएँ।

ढोल-नगाड़ों की ताल,

पर सब मिल झूमें-गायें।।


खुशियाँ बिखेरता, 

यह होली पर्व आये।

सभी के दिलों को,

प्रेम, उमंग से भर जाए।।


रचयिता

डॉ० भावना जैन,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय निवाड़ा,

विकास खण्ड व जनपद-बागपत।



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