विश्व रंगमंच दिवस

मानव जीवन है एक रंगमंच,

 सबको अभिनय करना पड़ता है।

 मन भीतर हो, जलधि पीर सी,

ऊपर मुस्कान भरना पड़ता है।।


एहसास के बादल घुमड़ रहे हों,

पलकों पर नमी का पहरा हो।

भारी प्रस्तर धीरज का तब,

हँसकर खुद रहना पड़ता है।।


सबको अभिनय करना पड़ता है ।।


सम्बन्धों की डोरी जब-जब टूटे,

सिसक-सिसक के रहना पड़ता है।

भरे समाज में रोना है वर्जित,

घुट-घुट कर हँसना पड़ता है।

तोड़ जंजीर मन निकलना चाहे,

मर्यादा से पीड़ित रहना पड़ता है।।


सबको अभिनय करना पड़ता है ।।


चैन, भाव, चिन्ता, सुकूं को तज कर

"सब अच्छा है" झूठ कहना पड़ता है।

अपने ही सगे बन, खंजर रखते हैं,

जख्म-ए-नासूर खुद ही ढकना पड़ता है।।


सबको अभिनय करना पड़ता है।


प्रेम विवश है, बिरह पीड़ा सहने को, 

रूह सहे कुछ ना, फिर भी कहना है।

कितने दर्द, कुढ़न है जीवन में फिर भी,

शान्त, सौम्य ऊपर से दिखना पड़ता है।।


सबको अभिनय करना पड़ता है।।


रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी, 
जनपद-जौनपुर।

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