महिला दिवस

रखती है मायके का मान,

करती है ससुराल का सम्मान।

भूलती नहीं कभी पति के अरमान,

रखती है हर पल अपने बच्चों का ध्यान।

फिर भी होती है सदा अपने आप से अंजान,

यही होती है एक नारी की पहचान।


    जीवन की कला को अपने अंदर समेटे हुए हमारी सभ्यता और संस्कृति को निखारकर जीवन को सुंदर आधार देने वाली महिलाओं के सम्मान के लिए ही हर वर्ष 8 मार्च को देश भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा, प्यार और देखभाल का उत्सव है। राष्ट्र के बेहतर विकास के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना एक बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि आज भी इस पुरुष प्रधान समाज में नारी को दोयम दर्जा ही दिया जाता है। चाहें वह बाहर जाकर पैसे कमाए या घर में चौबीसों घंटे काम करें क्या हमारे समाज में किसी महिला को इतनी आजादी है कि वह अपनी कमाई से अपने मन की कोई बड़ी चीज ले ले। शहरी क्षेत्रों में तो फिर भी हालात इतने बुरे नहीं हैं। पर ग्रामीण इलाकों में महिला को माँ की कोख से ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है। हत्या, लैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, शोषण, दमन बलात्कार, तिरस्कार, मानसिक यंत्रणा आदि कई समस्याएँ हैं जिनसे आज भी हर ग्रामीण महिला का सामना होता रहता है। इसलिए जब तक महिलाओं को सभी प्रकार के उत्पीड़न से मुक्त नहीं किया जाएगा तब तक हमारे महिला दिवस उत्सव का रंग फीका ही रहेगा। ग्रामीण परिवेश की ज्यादातर औरतें अशिक्षित हैं या यूँ कहें कि नाम मात्र के लिए ही शिक्षित हैं। इसलिए वह अपने अधिकारों को नहीं पहचानती। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले अधिकांश पुरुषों के जीवन का उद्देश्य मात्र दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना है। ऐसे में उनसे महिला सशक्तीकरण की उम्मीद करना ही बेकार है। वर्तमान में सबसे ज्यादा जागरूकता और लोगों की सोच बदलने की आवश्यकता गाँव में ही है क्योंकि जिस देश की लगभग तीन चौथाई आबादी गाँव में बस्ती हो और कृषि ही अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हो उस देश में गाँव की महिलाओं को सशक्त बनाए बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना भला कैसे संभव है। 

आज आवश्यकता है कि हम गाँव की महिलाओं को जागरूक करें, उन्हें उनकी क्षमता की पहचान कराएँ, उनके कौशल को निखारने और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करें। ताकि वह भी अपने परिवार के साथ-साथ देश और समाज के विकास में अपनी भूमिका का निर्वहन अच्छे से करें क्योंकि ये महिलाएँ अपने पूरे परिवार का ध्यान रखने के साथ ही कृषि कार्य, मजदूरी, मवेशियों का ध्यान एवं सभी घरेलू कार्य स्वयं ही करती है। पर अपने अंदर की छुपी प्रतिभा को नहीं पहचान पाती।

यद्यपि हमारी सरकार द्वारा महिलाओं के उत्थान के लिए अनेक कार्यक्रम एवं योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। लेकिन ग्रामीण अंचलों में इनका क्रियान्वयन सही तरीके से नहीं हो पा रहा। परिणामस्वरूप इसका लाभ गाँव की महिलाओं को नहीं मिल पा रहा है। गाँव की महिलाएँ अपनी हर समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रखती हैं। आवश्यकता है उन्हें उपयुक्त अवसर देने की। हमारे महिला दिवस उत्सव की संपूर्ण सफलता तभी मानी जा सकती है, जब हमारे समाज की हर नारी सशक्त व स्वस्थ हो। फिर चाहें वह ग्रामीण परिवेश की हो या शहरी क्षेत्र की क्योंकि बालक के विकास पर प्रथम और सबसे अधिक प्रभाव उसकी माता का ही पड़ता है। ऐसे में माता का शिक्षित, सशक्त और स्वस्थ होना आने वाली पीढ़ी को प्रभावित करता है।


लेखिका                                    

डॉ0 प्रज्ञा त्रिवेदी,

प्रधानाध्यापिका,

उच्च प्राथमिक विद्यालय खरोंच (कंपोजिट),

विकास खण्ड-महुआ, 

जनपद-बाँदा।




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