जल

तर्ज - दुश्मन ना करे 


लोगों ने जल को जाने,

क्यों बर्बाद किया है।

जीना प्राणियों का,

दुश्वार किया है।


समझा ना मोल जल का,

लोगों ने ना कभी।

फिजूल में ही,

जल को बेकार किया है।

जीना प्राणियों का.......


जल के बिना जिएँगे हम,

कैसे बताओ जी?

चिंतन मनन क्या हमने,

एक बार किया है?

जीना प्राणियों का.......


तड़प-तड़प मरेंगे हम,

आँसू बहाएँगे।

फिर गुनाह क्यों ये हमने,

हर बार किया है।

जीना प्राणियों का.......


जल से ही है जीवन,

जल अमृत समान है।

कुदरत ने नित ही हमको,

आगाह किया है।

जीना प्राणियों का.......


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।



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