रंग दो लाल गुलाल

फागुन की फुहार में

मस्ती की रस धार हो

प्रीत की होली में

राधा संग बृजलाल हो।


अनुराग हो प्यार हो

स्नेह की बरसात हो

रंग खिले अधरों पर

गीत भी मल्हार हो।।


गुलाल की लाली में

टेसू संग उन्माद हो

होली की हुड़दंग में

फगुआ की तान हो।


मिलकर जी लो

चार खुशियों के पल

मन के सारे द्वेष मिटें

रंगे की बौछार हो।


होली की अग्नि में

स्वाहा हो कलुषित मन

थोड़ी सी रूढ़ियों की

हो समिधा, ढोंग और

ढकोसलों का अर्पण हो।


होलिका के दामन से

चुरा लो थोड़ी सी

त्याग और तपस्या

थोड़ी शिद्दत और विश्वास हो।


प्रह्लाद सी निष्ठा और

थोड़ा सा समर्पण हो।

आस्था और संस्कारों से

भरा पूरा ब्रम्हांड हो।


पूरे आलम में 

अबीर हो गुलाल हो

रिश्तों की गुझिया में

भावों की मिठास हो।


रचयिता

मंजरी सिंह,

प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उमरी गनेशपुर,
विकास खण्ड-रामपुर मथुरा,
जनपद-सीतापुर।



Comments

Total Pageviews