होली

पूरी करो ना दोस्तो

तुम मेरी ये ख्वाहिश भोली

बैर वैमनस्य भूल कर

मनाओ तुम अब की होली


ईर्ष्या और द्वेष की जो लकड़ियाँ

लादे फ़िर रहे हो तुम पीठ पर

उनका दहन कर डालो इस बार

और जश्न मनाओ प्रेम की जीत पर


नहीं चाहता है लेना कोई

तुम्हारा खज़ाना अनमोल

मग़र यूँ नज़र न फेरो अपनों से

चाहते हैं जो सिर्फ़ प्यार के दो बोल


प्रेम और सम्मान का तुम

अपनों के माथे पर लगा गुलाल दो

भूल कर पुरानी सब बातें

गले लगा कर रिश्तों को सँभाल लो


हर रिश्ते का रंग होगा शामिल

तभी तो मन भाएगी होली

खेलोगे जब हर्षोल्लास के संग

तो यादगार बन जाएगी होली


रचयिता

भावना तोमर,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय  नं०-1 मवीकलां,

विकास खण्ड-खेकड़ा,

जनपद-बागपत।



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