विश्व गौरैया दिवस

फुदक फुदक कर आती गौरैया,

सबका मन लुभाती गौरैया।

मेरी छत पर आकर देखो,

अपनी मनमानी करती गौरैया।।


बचपन में आँगन में आती थी,

चीं -चीं करती दौड़ा करती थी,

आज नहीं अब ज्यादा दिखती,

 हमसे नहीं रूठा करती थी।।


लुप्तप्राय सी ये हो गई है,

रौनक यह अब खो गई है।

जैसे खोया अपना बचपन,

बेफिक्री सी ये खो गई है।।


बचाने को इस प्यारे जीव को,

दिवस रखा गया 20 मार्च को।

प्रस्ताव हुआ इसे बचाने को पारित,

क्या फलीभूत होगा प्रयास बचाने को।।


नन्हीं गौरैया कहीं छुप गई है,

शायद हमारे प्रयासों में कमी है।

इसे बचाना है हमारा प्रमुख कर्तव्य,

गौरैया ना दिखने से आँखों में नमी है।।


रचयिता

नम्रता श्रीवास्तव,

प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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