होली क्या हो ली

पूर्णिमा फागुन मास की 

तिथि आनन्द और उल्लास की।

रंगों के त्योहार होली का था पर्व

प्रेम भाईचारे का संदेश सर्व।


बुराई पर अच्छाई की जीत 

त्योहार हमें सीख दे जाते हैं।

पर तिथियों के जाने के बाद 

क्यों हम संदेश ये भूल जाते हैं।


सदा ही रहे प्रेम सदभाव 

हवा में घुले खुशियों का भाव।

सत-रंगीन  सबके सपने हों

पराए भी सभी अपने हों।


ना हो गरीबी दासता का जीवन

ना हो नफरत उदास का जीवन। 

अपनाते चलो इनको जीवन में

राग-द्वेष की जगह न हो मन में।


कोशिश दूसरों का दुःख मिटाने की 

सभी त्योहार देते हैं हमें सीख।

त्यौहार भी माँगें प्रेम की  भीख। 

त्यौहार भी माँगें प्रेम की भीख।


रचयिता 
मोनिका रावत मगरूर,
सहायक अध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय पैठाणी,
विकास खण्ड-थलीसैंण, 
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।



Comments

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    1. बहुत बहुत आभार आपका....🙏🙏💐💐

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  2. बहुत ही प्रेरक और सार्थक कविता

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    1. बहुत बहुत आभार आपका..💐💐

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    1. थैंक यू सर जी..💐💐

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    1. बहुत बहुत आभार आपका..💐💐

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  5. बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका..💐💐

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  6. आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया.....🙏🙏💐💐

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  7. शानदार महोदया,

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    1. शुक्रिया जी..💐💐

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