महिला सशक्तीकरण विशेषांक 257, डॉ वीमा गुप्ता, उत्तराखंड

*👩‍👩‍👧‍👧महिला सशक्तीकरण विशेषांक-257*


*मिशन शिक्षण संवाद परिवार की बहनों की संघर्ष और सफ़लता की कहानी*
(दिनाँक 20 मार्च 2021)
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2903992403211671&id=1598220847122173

*नाम-:* _डॉ वीमा गुप्ता_
*पद-:* _सहायक अध्यापक_
*विद्यालय-:* _राजकीय  आदर्श प्राथमिक विद्यालय धौला खेड़ा, हल्द्वानी_
*सफलता एवं संघर्ष की कहानी :-*
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*प्रथम नियुक्ति-:* _13 नवंबर 1999_
*वर्तमान विद्यालय में नियुक्ति-:* _16 अगस्त 2016_

             मेरी प्रथम नियुक्ति 1999 में सहायक अध्यापिका के रूप में राजकीय प्राथमिक विद्यालय सुंदरखाल धारी में हुई। मैं हल्द्वानी से थी, लगातार अंग्रेजी माध्यम विद्यालयों में पढ़ा रही थी अतः जब अपने विद्यालय का हाल दिखा तो बहुत ही दुख हुआ क्योंकि सरकार तो अत्यधिक पैसा सरकारी विद्यालयों पर खर्च कर रही थी। लेकिन उस स्तर का काम विद्यालयों में नहीं हो रहा था; ना तो कोई उपलब्धियां थी, ना कोई संतुष्टि थी। बस विद्यालय का खुलना, बच्चों का आना, छुट्टी में घर चले जाना, एक ही कमरे में बैठकर सारे बच्चों का एक साथ पढ़ाई करना, कक्षा 1 से लेकर 5 तक एक साथ अलग-अलग विषयों को लेकर चलना असंभव सा लगता था। किंतु हार मानने की आदत नहीं थी और सोचा कि विद्यालय की हालत जरूर सुधारने चाहिए। पहाड़ के जीवन से संघर्ष करते हुए उन संघर्षशील बच्चों को अपने छोटे-छोटे प्रयासों से नियम में चलना और उपलब्धियां प्राप्त करना सिखाया। कंपटीशन की भावना का विकास भी किया। क्योंकि उन बच्चों में किसी भी रूप में मुझे कंपटीशन की भावना नजर नहीं आती थी और कंपटीशन की भावना के साथ ही बच्चे आगे की ओर बढ़ते चले जाते हैं- ऐसा मैंने अपने अनुभवों से सीखा। बच्चा अबोध होता है, जो उसे सिखाया जाए वह सीखता चले जाता है। लेकिन उसे उस माहौल में बांधना जरूरी होता है। मैंने महसूस किया कि उन्हें वह माहौल ही नहीं दिया जा रहा था इसलिए वे प्रयास भी नहीं करते थे। मैंने कोशिश नहीं छोड़ी, बच्चे आगे चलकर बहुत अच्छा कार्य करने लगे, लेख पर ध्यान दिया सुंदर लेख बनाने लगे; मात्राएं, स्पेलिंग सभी कुछ मेरे छोटे-छोटे प्रयासों से सुधरने लगा।
            5 वर्ष बाद मेरा ट्रांसफर हो गया। जब मैं ट्रांसफर होकर हल्द्वानी आई तो मैंने महसूस किया कि सरकारी विद्यालयों में पहाड़ों की ही हालत दयनीय नहीं बल्कि सभी जगह स्थिति दयनीय है। मैंने यहां भी अपने प्रयास नहीं छोड़े बच्चों का मिलकर खेलना, नियमित रूप से व्यायाम करना, अखबार पढ़ना, किताबों को पढ़ना आदि की आदत डाली। बच्चे समय-समय पर अच्छा रिजल्ट देने लगे। प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते थे और अपने मन की बात कहने से कतराते नहीं थे जबकि आरंभ में ऐसा नहीं था।
               2016 में मेरी नियुक्ति आदर्श विद्यालय में अंग्रेजी की सहायक अध्यापिका के पद पर हुई। यह सत्य है कि अत्यधिक सरकारी सुविधाओं से विद्यालयों में छात्र नामांकन लगातार बढ़ता रहा परंतु संख्यात्मक वृद्धि के साथ ही गुणात्मक वृद्धि में कमी आ जाना स्वाभाविक है। इस कमी को दूर करने के लिए आवश्यक है कक्षा में रुचि पूर्ण शिक्षण पद्धति अपनाई जाए जैसे चर्चा परिचर्चा विधि, कहानी विधि, चलचित्र प्रदर्शन विधि, करके सीखना, समूह में विचारों के आदान-प्रदान, नृत्य गीत विधि, सामूहिक गतिविधियां, सीखने में नवीनता की विधि, नवाचारों का प्रयोग। मैंने इस विद्यालय में अंग्रेजी विषय पर काफी काम किया छोटे-छोटे प्रयासों से बच्चों में अंग्रेजी के प्रति झिझक समाप्त करने की कोशिश की। समय अवधि के बंधन में रहकर  कार्य करना मुश्किल होता है।
               अधिक समय बच्चों के साथ व्यतीत करने की इच्छा के कारण मैंने विद्यालय में कार्यशाला भी लगाई। जिसमें बच्चों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और मैंने वहां अंग्रेजी, सामूहिक नृत्य,भाव भंगिमा सहित कविता पाठ, एरोबिक्स, कैलीग्राफी विधा के द्वारा लेख को सुधारने, बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट बनवाने, प्रार्थना पर फोकस, क्राफ्ट वर्क सिखाना, चलचित्र के द्वारा शिक्षण को रुचिकर बनाना आदि विधियों को प्रयोग करते हुए बच्चों के आत्मविश्वास बढ़ाने और सर्वांगीण विकास का प्रयास किया। मैंने पाया कि यदि हम नवाचार का प्रयोग करते हुए शिक्षण को अनेक विधियों के द्वारा सरल बनाते हैं तो बच्चे भी रुचि लेकर अच्छा रिजल्ट प्रदान करते हैं। बच्चों को बराबर समय मिल पाता था अतः बच्चों ने बढ़ चढ़कर अपने मन के भावों को प्रकट किया। शुरू में झिझक थी किंतु अंतिम दिनों में जैसे माइक पर बोलने की होड़ सी लगी थी। बिना झिझक के बच्चे अपना परिचय माइक पर दे रहे थे और अधिक से अधिक बोलना चाह रहे थे। उनका आत्मविश्वास बढ़ चुका था यह मैंने ऑब्जर्व किया कोरोना काल में भी लगातार बच्चों से जुड़े रही । समय-समय पर वर्कशीट उपलब्ध कराते रही। प्रतियोगिताओं में हिस्सा दिलवा रही हूं। महसूस हुआ कि इस तरह के प्रयासों से बच्चे रुचि पूर्ण तरीके से सीख जाते हैं।
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मिशन शिक्षण संवाद          

*क्या खूब आदान-प्रदान है अपने अनुभवों का।*
*शिक्षकों के अनुभवों को आपस में बांटने का*
*शिक्षकों के अनुभवों को साझा करने*
*यह शिक्षण संवाद मंच बनाया है ।*
*कोटि-कोटि हृदय से धन्य है हम*,
*सभी शिक्षकों को नजदीक लाया है।*
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_✏संकलन_
*📝टीम मिशन शिक्षण संवाद।*

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