टपका का डर

था दिन एक बरसात का,

और चारों ओर था पानी।

भीग रही थीं दादी माँ, 

छप्पर से टपक रहा पानी।।


टपकता छप्पर बढ़ा रहा था,

दादी माँ की परेशानी।

करतीं भी दादी क्या,

छप्पर हो गई थी पुरानी।।


कुछ ही देर में पड़ने लगे,

फिर ओले बेर बराबर।

परेशान ओले से होकर,

बाघ पहुँचा दादी के घर।।


पका रही थीं भात दादी,

टपक रहा पानी चूल्हे पर।

झुँझलाकर बोलीं, बाघ से ज्यादा,

टपका का लगता है डर।


सुन के दादी की ये बात,

बाघ हो गया परेशान।

सोचा उसने टपका होगा,

कोई जानवर एक विशाल।।


फिर क्या था? ये सोच बाघ,

सहमा और घबराया।

रख के सिर पर पैर,

वहाँ से झटपट वो भाग आया।।


रचयिता
हिना सिद्दीकी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कुंजलगढ़,
विकास खण्ड-कैंपियरगंज,
जनपद-गोरखपुर।

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