एक शिक्षक होना

कितना आसान है ना,

एक "शिक्षक" होना।

करना ही क्या होता है? 

बस चन्द घण्टे बच्चों को पढ़ाना।। 


पढ़ाने के नाम पर भी तो कहाँ कुछ होता है, 

बस अक्षरों का ज्ञान, 

शब्दों की पहचान;

मात्राओं का प्रयोग, 

वाक्यों का उपयोग;

अंकों का मेल; 

जोड़, घटाना, गुणा, भाग का खेल।

ये सब तो बहुत आसान है।।


पर.. 

"शिक्षक" इसलिए महान नहीं होता कि वो सिर्फ ज्ञान देता है।

वो बच्चों के आस्थिर मन को आकार देता है।।

धीरे-धीरे कच्चे घड़े को, अपने प्रयासों से पकाता है।

हजारों असफलताओं के बाद भी,

खुद को नई सुबह के लिए तैयार करता है।।


धैर्य टूटता है उसका भी,

जब उसके प्रयासों का कोई परिणाम ना मिले।

अपनी क्षमताओं पर से भी उसका विश्वास उठता है।।


पर वो "शिक्षक" है ..

मार्ग दर्शक है, भविष्य निर्माताओं का। 

वो कैसे हार मान ले? 

वो फिर नया प्रयास करता है।

सफलता मिलेगी उसे, 

इसी आस में फिर शुरुआत करता है।।

बस ...इतना ही आसान है .. एक शिक्षक बनना।।


रचयिता
हिना सिद्दीकी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय कुंजलगढ़,
विकास खण्ड-कैंपियरगंज,
जनपद-गोरखपुर।

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