परिवर्तन

प्रकृति का नियम है परिवर्तन,
पर तुमको हर पल बदलते देखा।
जीवन में मैंने क्या देखा,
बस परिवर्तन ही परिवर्तन देखा।

सूरज पूर्व में उदय हुआ,
सायं  काल  पश्चिम देखा।
घटता-बढ़ता चाँद प्रतिदिन,
उसको न स्थिर  देखा।
जीवन में मैंने क्या देखा.................।

ऋतुओं की महिमा है न्यारी,
माह चार बदलते देखा।
गर्मी तपन, वर्षा उमस,
सर्दी में ठिठुरते देखा।
जीवन में मैंने क्या देखा................।

प्यार भरा प्रकृति का परिवर्तन,
हर पल खुशियाँ देते देखा।
जीवन की इस रंग-बिरंगी दुनिया में,
पल-पल प्यार लुटाते देखा।
जीवन में मैंने क्या देखा...............।

मानव ही मानवता भूल गया,
बस परिवर्तन की चाहत में।
खुद को आगे बढ़ाने के खातिर,
अपनों को कुचलते देखा।
जीवन में मैंने क्या देखा...............।

परिवर्तन जीवन का मूल है लेकिन ‌
तुम इतना न बदलो खुद को।
जब खुद से खुद का परिचय दो,
अपनी नजरों में न गिर जाओ तुम।
जीवन में मैंने क्या देखा.................।

हे नवयुग के मानव तुम,
परिवर्तन है स्वाधिकार तेरा।
स्वार्थ भावना के खातिर,
प्रकृति से न कर खिलवाड़ यहाँ।
जीवन में मैंने क्या देखा.............।

ये धैर्यवान नि:स्वार्थी  हैं,
इसका न लो इम्तिहान यहाँ।
विकराल रूप में आयी तो,
दु:खुद  होगा परिणाम यहाँ।
जीवन में मैंने क्या देखा...............।

रचयिता
बिधु सिंह, 
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गढी़ चौखण्ड़ी, 
विकास खण्ड-बिसरख,               
जनपद-गौतमबुद्धनगर।

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