ये मेरे अन्तर्मन की आवाज है

कफ़न सजाया है,लोगों ने मेरा।
मैंने कब अपने अरमानों का क़त्ल किया।।
खुली आँखों से सजाये थे सपने।
दरिन्दों ने क्यूँ मेरी आँखों को यूँ मूँद दिया।।
निकली थी हर रोज़ की तरह ऑफिस से घर को।
मन में जो नये ख्व़ाब थे, उन्हें कल पूरा करने को।।
हाँ मानती हूँ कि रात, थोड़ी देर हो गयी।
अकेली थी सड़क पर, मेरी बदकिस्मत, स्कूटी फेल हो गयी।।
पर थोड़ी ही दूरी पर कुछ लोग अजनबी दिये थे दिखायी।
शायद उनसे कुछ मदद मिलेगी, ऐसी उम्मीद थी जगायी।।
हाय ये लड़की की जात!! एक बार फिर आड़े आयी।
दिखा दी हैवानों ने अपनी हैवानियत ,
उनको ज़रा सी लाज़ भी नही आयी।।
फिर क्या था बारी-बारी से मर्दानगी दिखायी थी दरिन्दों ने।
बोटी-बोटी नोंच डाली, हवस के भूखे भेड़ियों ने।।
इतने पर भी सब्र न आया, मुझको ज़िन्दा ही जला दिया।
और फिर से भारत की बेटी में असुरक्षा का भाव जगा दिया।।
हुई शर्मसार फिर एक बार, इस देश के कानून की व्यवस्था।।
जहाँ इस देश की बेटी के लिए, फिर से नहीं थी कोई सुरक्षा।।
कभी निर्भया, कभी रेड्डी बदलते नाम बस मेरे।
हवस की भूख का हर बार, निवाला बनती हूँ, हे दरिन्दे तेरे।।
फिर एक सवाल ज़हन में मेरे आया है।
अगला शिकार बनाने को, इन दरिन्दों ने
किस बेटी को निहारा है।

रचियता
सुधारानी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय सहारा खुर्द,
विकास खण्ड-इगलास,
जिला-अलीगढ़।

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