चिराग मिल गये

मेरी राह के हम साये मिल गये,
कब से ढूँढता था आज मिल गये।

अकेला था मौजों गम में खेलता,
वो मेरे गम के हमदर्द मिल गये।

तमाम थीं मुसीबतें जो झेलता रहा,
बुरे जो दौर थे वो आज मिट गये।

राह पे रोशनी का आगाज हो गया,
अँधेरों में जलाने को चिराग मिल गये।

सोचता था मैं अकेला हूँ इस राह पर,
रब से की दुआएँ नतीजे मिल गये।

चमन को सजाने का ये वक्त आ गया,
ख्वाबों के गुल चमन में आज खिल गये।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

Comments

Total Pageviews