घर तरह-तरह के

होती बारिश घनी जहाँ
रहता तल पानी भरपूर,
बाँस पर बनते घर वहाँ
थोड़े ऊँचे जमीं से दूर।।

उत्तरी और दखिन गोलार्द्ध
बर्फ से जमे ढके होते,
शीत सिल्लियों से बनाते इग्लू
गर्म रख फिर इनमें सोते।।

वेनिस जैसे स्थान पर
घर पानी पर हैं तैरते,
हूँ नाव पर मकान सा दिखता
हाउसबोट है मुझको कहते।।

नाममात्र की बारिश जहाँ
उस पर सूरज तेवर मन,
मिट्टी घर राहत का मंदिर
शीतल करे मुरझाया तन।।

एक होता है टेंट बच्चों
लहराता रहता मनमौजी,
लेकर चलते जहाँ मन करे
घुमन्तू खानाबदोश और फौजी।।

रचयिता
योगेश कुमार,
सहायक अध्यापक,
नंगला काशी 
विकास खण्ड-धौलाना,
जनपद-हापुड़।

Comments

Total Pageviews