सप्त कर्म

तर्ज-भला किसी का कर न सको तो....

सप्त कर्म तुम प्रतिदिन करना
शूलों से भी नही डरना।
गर जो आये इक बाधा तो
डटकर तुम उससे लड़ना।।

१) हिंसा-अहिंसा भेद न हो तो
इतना कहकर खत्म करना।
बिना वजह के कष्ट पहुँचाकर
जीवों की हत्या मत करना।।

२) पदचिन्हों पर रुक न सको तो
सीधे-सीधे तुम चलना।
हरिश्चन्द्र सा सत्य बताकर
जीवन की रक्षा करना।।

३) तीजे कर्म का मोल नहीं है
धर्म की तुम रक्षा करना।
धर्म-कर्म में चुनना हो तो
कर्म को तुम आगे रखना।।

४) कर्ण सा दानी बन न सको तो
इतना सा कारज करना।
गर कोई ज़रूरत पड़े कभी तो
मदद को हाथ खुले रखना।।

५) गर तुम जीवन दे न सको तो
बेज़ुबान पे रहम करना।
छोटे-छोटे जीवों पर तुम
दया पंच कर्म करना।।

६) माँ सा लाड़ लड़ा न सको तो
ढाई अक्षर का मन रखना।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई
देश पे प्रेम अथाह रखना।।

७) तप-दानी तुम बन न सको तो
सप्त कर्म कुछ यूँ करना।
इन्द्रियों को वश में करके
योग कर्म प्रतिदिन करना।।

शूलों से भी नही डरना......

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

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