गुलाबी ठण्ड

कॉफी का मग, चाय की प्याली,
लगती हमको बड़ी मतवाली।

गुड़, पापड़ी, रेवड़ी, मूँगफली,
घर से धूप सेंकने निकली।

दिन की धूप सुहावनी लगती,
सूरज से बढ़ गयी दोस्ती।

गुलाबी ठण्ड और सुनहरी धूप,
जाड़े का क्या सुन्दर रूप।

चाय, समोसे और गरम सूप,
सर्दी में प्यारी लगती धूप।

स्वेटर, टोपी, मोजे, दस्ताने,
सर्दी में सब इनको पहने।

गुलाबी ठण्ड का स्वागत करते,
घर में गोंद के लड्डू बनते।

तन पर लपेटे कोहरे की चादर,
साथ में लायी ठण्ड की गागर।

गरम पानी और गीज़र, हीटर,
बिजली का भागे अब मीटर।

सर्दी देखो क्या कमाल कर गयी,
नाक सभी की लाल कर गयी।

रचयिता
अंजना कण्डवाल 'नैना'
रा0 पू0 मा0 वि0 चामसैण,
विकास क्षेत्र-नैनीडांडा,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

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