मैंने देखा

आँगन में गुलाब के पेड़ पर
नन्हीं चिड़िया बना रही घोंसला
जो लगे अनोखा
मैंने देखा......

चुन-चुन कर तिनके लाती
अधरों की शोभा और बढ़ जाती
फिर नीड़ में बुन जाती
न थकान न व्याकुलता
है बड़ी चंचल और सजगता
फिर-फिर नए कलेवर में आतुरता
मैंने देखा.....
कुछ दिन बाद शिशु हुए चार
चूं-चूं करते बच्चे,
लगते कितने अच्छे
दिन भर चिड़िया करती रखवाली
समय पाकर निगाह बिल्ली है डाली
ईश्वर ने दिया न्योता
देर लगे इसमें कैसा
जी भर खाऊँगी
 खुशियाँ मौज मनाऊँगी
चिड़िया समझी बिल्ली की चाल
मेरे बच्चों को डालेगी मार
चूं-चूं कर आवाज लगायी
बच्चों पर विपदा है आयी
कोई बचाओ आज
सदा रहूँगी आँगन के पास
बच्चा मेरा प्राणों से प्यारा है
बड़े स्नेह प्यार से पाला है
सुन ममतामयी पुकार
गृहणी डंडा लेकर आयी
ये चारों मेरे अपने हैं भाई
देख माजरा बिल्ली के समझ आयी
भागन में वह देर न लगायी
पशु पक्षियों पर करुणा, दया, प्रेम करना है
रखें सदा पास, इन्ही के संग रहना है
प्रकृति संरक्षण सदा हमें करना है
रहें निरोग दीर्घ जीवी बनना है।

रचयिता 
देव सरन,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सुरवारी,
विकास खण्ड-सोहावल,
जनपद-अयोध्या।

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