कहाँ रहेंगी चिडियाँ

हरे-भरे पेड़  सब काट रहे हैं।
जीवन में विष घोल रहे हैं।
चिड़ियों का घर सब तोड़ रहे हैं।
मन में आता है एक सवाल अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ,
अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
खेतों में खाद का जहर घोल रहे हैं।
पी-पीकर विषैला जल तड़प-तड़प कर मर रही हैं चिडियाँ।
 अब कैसे जियेंगी चिडियाँ, अब कैसे बचेंगी चिडियाँ।
मन में आता है बस एक सवाल अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ,
अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
पहले तो घने वन थे, बाग थे उपवन थे।
आमों के पेड़ों पर तोतों का बसेरा होता था।
बाग में जाते ही मन प्रफुल्लित हो जाता था।
जीवन के सारे दुख-दर्द पक्षियों के चहचाहट में खो जाते थे।
अब तो बस नाम के रह गये वन,बाग और उपवन।
मन में बस एक सवाल आता है अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ,
अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
चिड़ियों के बसेरों की जगह अब आलीशान मकान लहराते हैं।
ताजी हवा को भूल हम सब कृत्रिम हवा में खो जाते हैं।
चिड़ियों को पिजरे में कैद कर खुद पक्षी से प्रेम दिखाते हैं।
अपनी आवश्यकताओं में पेड़ों को काट और उखाड़ डालते हैं।
नहीं सोचते हैं हम कभी कि अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
मन में बस एक सवाल आता है अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ,
अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
मैंने संकल्प लिया है कि खुद पेड़ लगाऊँगा,
बच्चों से पेड़ लगवाऊँगा, बड़ों से पेड़ लगवाऊँगा,
सबसे पेड़ लगवाऊँगा।
धरती पर हरियाली लाकर चिड़ियों का आशियाना बचाऊँगा।
ताकि फिर यह सवाल हो जाए सदा के लिए दूर कि अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।
अब कहाँ रहेंगी चिडियाँ।।

रचयिता
अजय कुमार श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय टेवाँ प्रथम,
विकास खण्ड-मंझनपुर, 
जनपद-कौशाम्बी।।

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